May 14, 2020
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ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया,ये इंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया,ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया,यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .हर इक जिस्म घायल, हर इक रूह प्यासीनिगाहों में उलझन, दिलों में उदासीये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासीयह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .यहाँ इक खिलौना है इसां की हस्तीये बस्ती हैं मुर्दा परस्तों की बस्तीयहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्तीयह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .जवानी भटकती हैं बदकार बन करजवान जिस्म सजते है बाज़ार बन करयहाँ प्यार होता है व्योपार बन करयह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .यह दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं हैवफ़ा कुछ नहीं, दोस्ती कुछ नहीं हैजहाँ प्यार की कद्र कुछ नहीं हैये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .जला दो इसे फूक डालो ये दुनियाजला दो, जला दो, जला दोजला दो इसे फूक डालो ये दुनियामेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनियायह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है
सखी री बिरहा के दुखड़े सह सह कर जब राधे बेसुध हो ली
तो इक दिन अपने मनमोहन से जा कर यूँ बोलीआज सजन मोहे अंग लगालो जनम सफ़ल हो जाये
हृदय की पीड़ा देह की अग्नि सब शीतल हो जायेकरूं लाख जतन मोरे मन की तपन मोरे तन की जलन नहीं जाये
कैसी लागी ये लगन कैसी जागी ये अगन जिया धीर धरन नहीं पाये
प्रेम सुधा … मोरे साँवरिया प्रेम सुधा इतनी बरसा दो जग जल थल हो जाये
आज सजन …मोहे अपना बनालो मेरी बाँह पकड़ मैं हूँ जनम जनम की दासी
मेरी प्यास बुझा दो मनहर गिरिधर, प्यास बुझा दो मैं हूँ अन्तर्घट तक प्यासी
प्रेम सुधा … मोरे साँवरिया प्रेम सुधा इतनी बरसा दो जग जल थल हो जाये
आज सजन …कई जुग से हैं जागे मोरे नैन अभागे कहीं जिया नहीं लागे बिन तोरे
सुख देखे नहीं आगे दुःख पीछे पीछे भागे जग सूना सूना लागे बिन तोरे
प्रेम सुधा, मोरे साँवरिया,साँवरिया प्रेम सुधा इतनी बरसा दो जग जल थल हो जाये
आज सजन …
Song : चलो इक बार फिर से
Film : गुमराह
Lyrics : साहिर लुधियानवी (गुमराह)
Singer : महेन्द्र कपूर
चलो इक बार फिर से, अजनबी बन जाएं हम दोनों
न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
न तुम मेरी तरफ़ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों से
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्म-कश का राज़ नज़रों सेतुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जलवे पराए हैं
मेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माझी की
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साये हैंतार्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा